डॉ. वेदपà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª वैदिक
कल पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ और आज वितà¥à¤¤à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ का à¤à¤¾à¤·à¤£ सà¥à¤¨à¤¾à¥¤ दोनों à¤à¤¾à¤·à¤£à¥‹à¤‚ से आम जनता को जो उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी, वह पूरी नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ का à¤à¤¾à¤·à¤£ सà¤à¥€ टीवी चैनलों पर रात को आठबजे पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ होगा, यह सूचना चैनलों पर इतनी बार दोहराई गई कि करोड़ों लोग बड़ी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और उतà¥à¤¸à¥à¤•ता से उसे सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ बैठगठलेकिन मà¥à¤à¥‡ दरà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ नेताओं ने फोन किà¤, उनमें à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾à¤ˆ à¤à¥€ शामिल हैं कि पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ का à¤à¤¾à¤·à¤£ इतना उबाऊ और अपà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिक था कि 20-25 मिनिट बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उसे बंद करके अपना à¤à¥‹à¤œà¤¨ करना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ठीक समà¤à¤¾ लेकिन मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ कि आखिरी आठ-दस मिनिटों में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने काफी काम की बात कही। जैसे सरकार 20 लाख करोड़ रà¥. लगाकर लोगों को राहत पहà¥à¤‚चाà¤à¤—ी। यह सब कैसे होगा, यह खà¥à¤¦ बताने की बजाय, इसका बोठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वितà¥à¤¤à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ निरà¥à¤®à¤²à¤¾ सीतारामण पर डाल दिया। लोग पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ से आशा कर रहे थे कि वे करोड़ों पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ मजदूरों की घर-वापसी की लोमहरà¥à¤·à¤• करà¥à¤£-कथा पर कà¥à¤› बोलेंगे और कà¥à¤› à¤à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾à¤¦à¤¾à¤¯à¤• बातें कहेंगे, जिससे हमारे ठपà¥à¤ª कारखाने और उदà¥à¤¯à¥‹à¤—ों में कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¾à¤£ लौटेंगे लेकिन आज वितà¥à¤¤à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ ने लंबे-चौड़े आंकड़े पेश करके जो आरà¥à¤¥à¤¿à¤• राहतों और सरल करà¥à¤œà¥‹à¤‚ की घोषणा की है, उनसे छोटे और मà¤à¥‹à¤²à¥‡ उदà¥à¤¯à¥‹à¤—ों को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ जरà¥à¤° मिलेगा लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मूल समसà¥à¤¯à¤¾ के बारे में à¤à¤• शबà¥à¤¦ à¤à¥€ नहीं कहा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह नहीं बताया कि तालाबंदी से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ बेरोजगारी, à¤à¥à¤–मरी, मंदी, घनघोर सामाजिक और मानसिक थकान का इलाज कà¥à¤¯à¤¾ है ? दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के अनà¥à¤¯ देशों की सरकारें अपनी जनता को राहत कैसे पहà¥à¤‚चा रही हैं, यदि इसका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ हमारे पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ और वितà¥à¤¤à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ सरसरी तौर पर à¤à¥€ कर लेते तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ गà¥à¤° मिल जाते। हमें विशà¥à¤µ-गà¥à¤°à¥ बनने का तो बड़ा शौक है लेकिन हम अपने नौकरशाही दड़बे में ही कैद रहना चाहते हैं। यह सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है कि नेताओं की सबसे पहली चिंता उदà¥à¤¯à¥‹à¤—पतियों और वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से ही जà¥à¥œà¥€ होती है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनका सहयोग ही उनकी राजनीति की पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤µà¤¾à¤¯à¥ होता है लेकिन वे लोग यह कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं समठपा रहे हैं कि शहरों में चल रहे उदà¥à¤¯à¥‹à¤—-धंधों की रीॠवे करोड़ों मजदूर हैं, जो हर कीमत पर अपने घरों पर लौट रहे हैं और जिनके वापस आठबिना उदà¥à¤¯à¥‹à¤—-धंधों के लिठदी गई ये आसान करà¥à¤œà¥‹à¤‚ की रियायतें निररà¥à¤¥à¤• सिदà¥à¤§ हो जाà¤à¤‚गीं।