कà¥à¤¯à¤¾ है इस मंदिर का राज़, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं पड़ती ज़मीन पर इसकी छाया?
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ मे à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ देश है जहां पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से ही à¤à¤¸à¥‡ अजूबे मिलते हैं। जो हमें चौंका देते हैं। à¤à¤¸à¤¾ ही à¤à¤• रहसà¥à¤¯ है बृहदेशà¥à¤µà¤° मंदिर, यह मंदिर अपनी à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª के लिठजाना जाता है। इस मंदिर को राजा चोला पà¥à¤°à¤¥à¤® ने बनवाया था। इसकी उंचाई है 216 फीट। इस मंदिर की खास बात यह है की इसे पज़à¥à¤œà¤¼à¤² टेकनीक से बनाया गया था। यानी दो पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ को बिना पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤° के आपस में जोड़ना, और इसमें लगे हैं 130000 टन गà¥à¤°à¥‡à¤¨à¤¾à¤‡à¤Ÿ पतà¥à¤¥à¤°à¥¤

धूप मे खड़ी किसी à¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥ की छाया सूरà¥à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° दिखती है। दिन के 12 बजे à¤à¤• समय होता है जब छाया नहीं दिखती है। लेकिन यहां सबसे हैरानी की बात ये है की इस मंदिर के गà¥à¤‚बद की छाया ज़मीन पर किसी à¤à¥€ समय नहीं पड़ती। यह à¤à¤• रहसà¥à¤¯ बना हà¥à¤† है। इसका जवाब वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों के पास à¤à¥€ नहीं है।
यहां के पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से बनाया है मंदिर

जिन पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से ये मंदिर बना है, उसका यहां से सौ-सौ किलोमीटर दूर तक कोई खान नहीं है। कहा जाता है की ये पतà¥à¤¥à¤° मीलों दूर से मगवायें गये थे। मंदिर सन 1010 में पूरी तरह बन कर तैयार हà¥à¤† था। इसे 1996 में वरà¥à¤²à¥à¤¡ हेरिटेज में शामिल किया गया।
शिखर पर रखा सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤•लश

इसके शिखर पर à¤à¤• सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤•लश है जो à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° पर रखा गया है। इस पतà¥à¤¥à¤° का वज़न है 80 टन। आखिर इसे 216 फीट उपर कैसे पहà¥à¤‚चाया गया यह कीसी को नहीं पता। à¤à¤¸à¥‡ कई सवाल हैं, जिनकी गà¥à¤¥à¥à¤¥à¥€ अब तक सà¥à¤²à¤ नहीं पाई है।