अब मध्य प्रदेश भी करेगा काले चावल की खेती


मध्य प्रदेश के किसानों के लिए एक खुशखबरी है। अब मध्य प्रदेश भी काले चावल की खेती कर सरकेगा। दरअसल सिक्किम सरकार की संस्था सीम्फेड ने इसके लिए दो ज़िलों का चयन किया है। जहां इन चावलों की खेती की जाएगी।

अब मध्य प्रदेश भी करेगा काले चावल की खेती


मध्य प्रदेश के किसानों के लिए एक खुशखबरी है। à¤…ब मध्य प्रदेश भी काले चावल की खेती कर सरकेगा। दरअसल à¤¸à¤¿à¤•्किम सरकार की संस्था सीम्फेड ने इसके लिए दो ज़िलों का चयन किया है। जहां इन चावलों की खेती की जाएगी।

दरअसल काले à¤šà¤¾à¤µà¤² की मांग बाज़ार में लगातार बढ़ रही है। इसे देखते हुए सिक्किम सरकार की संस्था सीम्फेड à¤¨à¥‡ ये फ़ैसला लिया है। à¤…ब इसकी पैदावार के लिए मध्य प्रदेश के मंडला और डिंडोरी ज़िले को चुना गया है। असम, सिक्किम और मणिपुर में पैदा होने वाले विशेष प्रकार के इस काले चावल को वहां की स्थानीय भाषा में चाक हवो कहा जाता है।
 

इस बारे में सीम्फेड के प्रोजेक्ट मैनेजर राकेश सिंह बताते हैं " इस विशेष चावल की खेती के लिए मध्य प्रदेश के दो जिलों का चयन किया गया है। मंडला और डिंडोरी का मौसम इसकी पैदावार के लिए अनुकूल पाया गया है। असम से आयी टीम ने इसकी पुष्टि भी की है। " राकेश सिंह के मुताबिक बाजार में इस चावल की मांग दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इस समय इस काले चावल की कीमत 200 से 500 रुपए प्रति किलो तक है। पारंपरिक सफेद चावल के मुकाबले काले चावल को सेहत के लिए ज्‍यादा बेहतर माना जाता है। वहीं यह किसानों के लिए भी बहुत लाभकारी है। हालांकि आम चावल की तरह इसकी पैदावार कम होती है लेकिन कीमत भी अच्छी मिलती है। एक एकड़ में सामान्य चावल की खेती जहां 25 से 30 कुंतल तक हो जाती है तो वहीं काला चावल की पैदावार आठ से 10 कुंतल होती है।" 

वे आगे बताते हैं "इस चावल की सबसे खास बात यह है कि इसे मधुमेह रोगी भी खा सकते हैं। मेडिकली इसकी पुष्टि भी हो चुकी है। ये एंटी ऑक्‍सीडेंट होता है जो हमारे शरीर की रक्षा करता है। आम सफेद चावल के मुकाबले इसमें ज्‍यादा विटामिन बी और ई के साथ कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक की मात्रा भी ज्‍यादा होती है।" 
 

बता दें काला चावल  आकार में व्‍हाइट या ब्राउन राइस जैसा ही होता है। इसकी खेती की शुरुआत चीन से हुई थी। इसके बाद असम और मणिपुर में शुरू हुई। अब इसे देश के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने की कवायद हो रही है। फिलहाल इसकी पैदावार सबसे ज़्यादा à¤®à¤£à¤¿à¤ªà¥à¤° में हो रही है। इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 60 हजार रुपए की लागत आती है। 
 

 

 

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