मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के किसानों के लिठà¤à¤• खà¥à¤¶à¤–बरी है। अब मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¥€ काले चावल की खेती कर सरकेगा। दरअसल सिकà¥à¤•िम सरकार की संसà¥à¤¥à¤¾ सीमà¥à¤«à¥‡à¤¡ ने इसके लिठदो ज़िलों का चयन किया है। जहां इन चावलों की खेती की जाà¤à¤—ी।
दरअसल काले चावल की मांग बाज़ार में लगातार बढ़ रही है। इसे देखते हà¥à¤ सिकà¥à¤•िम सरकार की संसà¥à¤¥à¤¾ सीमà¥à¤«à¥‡à¤¡ ने ये फ़ैसला लिया है। अब इसकी पैदावार के लिठमधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के मंडला और डिंडोरी ज़िले को चà¥à¤¨à¤¾ गया है। असम, सिकà¥à¤•िम और मणिपà¥à¤° में पैदा होने वाले विशेष पà¥à¤°à¤•ार के इस काले चावल को वहां की सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में चाक हवो कहा जाता है।
इस बारे में सीमà¥à¤«à¥‡à¤¡ के पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿ मैनेजर राकेश सिंह बताते हैं " इस विशेष चावल की खेती के लिठमधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के दो जिलों का चयन किया गया है। मंडला और डिंडोरी का मौसम इसकी पैदावार के लिठअनà¥à¤•ूल पाया गया है। असम से आयी टीम ने इसकी पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¥€ की है। " राकेश सिंह के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• बाजार में इस चावल की मांग दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इस समय इस काले चावल की कीमत 200 से 500 रà¥à¤ªà¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ किलो तक है। पारंपरिक सफेद चावल के मà¥à¤•ाबले काले चावल को सेहत के लिठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बेहतर माना जाता है। वहीं यह किसानों के लिठà¤à¥€ बहà¥à¤¤ लाà¤à¤•ारी है। हालांकि आम चावल की तरह इसकी पैदावार कम होती है लेकिन कीमत à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥€ मिलती है। à¤à¤• à¤à¤•ड़ में सामानà¥à¤¯ चावल की खेती जहां 25 से 30 कà¥à¤‚तल तक हो जाती है तो वहीं काला चावल की पैदावार आठसे 10 कà¥à¤‚तल होती है।"
वे आगे बताते हैं "इस चावल की सबसे खास बात यह है कि इसे मधà¥à¤®à¥‡à¤¹ रोगी à¤à¥€ खा सकते हैं। मेडिकली इसकी पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¥€ हो चà¥à¤•ी है। ये à¤à¤‚टी ऑकà¥à¤¸à¥€à¤¡à¥‡à¤‚ट होता है जो हमारे शरीर की रकà¥à¤·à¤¾ करता है। आम सफेद चावल के मà¥à¤•ाबले इसमें जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ विटामिन बी और ई के साथ कैलà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤®, मैगà¥à¤¨à¥€à¤¶à¤¿à¤¯à¤®, आयरन और जिंक की मातà¥à¤°à¤¾ à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ होती है।"
बता दें काला चावल आकार में वà¥à¤¹à¤¾à¤‡à¤Ÿ या बà¥à¤°à¤¾à¤‰à¤¨ राइस जैसा ही होता है। इसकी खेती की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ चीन से हà¥à¤ˆ थी। इसके बाद असम और मणिपà¥à¤° में शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆà¥¤ अब इसे देश के अनà¥à¤¯ हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ तक पहà¥à¤‚चाने की कवायद हो रही है। फिलहाल इसकी पैदावार सबसे ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मणिपà¥à¤° में हो रही है। इसकी खेती में पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हेकà¥à¤Ÿà¥‡à¤¯à¤° 60 हजार रà¥à¤ªà¤ की लागत आती है।