रात में जब सोया था
सोते-सोते à¤à¤• सपना बोया था
बस à¤à¤• दो हफà¥à¤¤à¥‡ में
तैयार होगी अरहर खेतों में
ये महज़ सिरà¥à¤« पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ न होकर, उस हर à¤à¤• किसान का सपना है जो वो हर रात सोने से पहले देखता है और जब सवेरे उसकी आंख खà¥à¤²à¤¤à¥€ है तो उसके सामने जिनà¥à¤¦à¤—ी की हकीकत का जो मंज़र होता है जिसे देख वो किसान आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ करने पर मजबूर हो जाता है। कà¤à¥€ बाढ़ कà¤à¥€ सूखा और रही-सही कसर पूरी कर देता है उसका गिरवी मकान और सरकारी लगान। मौजूदा समय में आज à¤à¥€ संसद में दो क़ानून लंबित हैं जिनके तहत किसानों को अपनी फसल की नà¥à¤¯à¥‚नतम क़ीमत क़ानूनी गारंटी के रूप में मिलना संà¤à¤µ हो सकता है....लेकिन आज की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में यह सरकार की दया पर निरà¥à¤à¤° करता है कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾ मिले और दूसरा बिल कहता है कि किसान जिस करà¥à¤œ में डूबा हà¥à¤† है, उस करà¥à¤œ से à¤à¤• बार किसान को मà¥à¤•à¥à¤¤ कर दिया जाà¤, ताकि वो à¤à¤• नई शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ कर सके। देश के किसान के ये हालात शायद ही किसी से छिपे हो।
सरकारी आंकड़ों बताते है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ में हर साल 12 हजार किसान आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ करते हैं। किसान करà¥à¤œ और खेती के घाटे को बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ नहीं कर पाता और अपनी जान दे देता है। सरकारी आंकड़ों के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• 2015 में कृषि कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ कà¥à¤² 12,602 लोगों ने आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ की। 2015 में सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ 4,291 किसानों ने महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° में आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ की जबकि 1,569 आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤“ं के साथ करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• इस मामले में दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर है। 2014 में आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ करने वाले किसानों की संखà¥à¤¯à¤¾ 12,360 और 2013 में 11,772 थी, लगातार किसानों की आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ के मामलों में साल-दर-साल बढ़ोतरी होती जा रही है। पिछले à¤à¤• दशक के दौरान किसानों की आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ के हजारों मामले सामने आये हैं। अधिकतर किसानों ने कीटनाशक पीकर तो कà¥à¤› ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. किसानों पर सबसे अधिक मार बेमौसम बारिश और सूखे से पड़ती है और कई बार दाम गिरने से à¤à¥€ इनकी कमाई पर असर पड़ता है तो किसानों की बदहाली की à¤à¤• तसà¥à¤µà¥€à¤° है।
किसानों के आज जो हालात हैं उसके लिठकिसी à¤à¤• सरकार को ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° ठहराना गलत होगा। पिछले 70 सालों में कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ ने सबसे ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सतà¥à¤¤à¤¾ का सà¥à¤– à¤à¥‹à¤—ा है, लेकिन इनकी नीतियों ने देश के अचà¥à¤›à¥‡ à¤à¤²à¥‡ किसानों को बीमार बनाकर असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ में à¤à¤°à¥à¤¤à¥€ करवा दिया। à¤à¤¸à¥‡ में गलोबल वारà¥à¤®à¤¿à¤‚ग ने किसानों की दशा को ओर बिगाड़ने दिशा में अहम à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆ है या यूं कहे कि बीमार किसानों को गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² वारà¥à¤®à¤¿à¤‚ग ने आईसीयू तक पहà¥à¤‚चा दिया है। आज जरूरत है देश के किसानों को उस आईसीयू से निकालने की....यदि समय रहते इस ओर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ नहीं दिया गया तो वो दिन दूर नहीं...जब देश का हर à¤à¤• तबका पानी ही नहीं अनà¥à¤¨à¤¹à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ की कमी को à¤à¥€ à¤à¥‡à¤²à¥‡à¤—ी.... सà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥€ इलाज अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को बदलने से होगा। देश में जो सिंचाई की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है और खेती के तरीकों के बदलने की ज़रूरत है। सरकार को शीघà¥à¤° ही इस ओर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देना होगा, जो वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ सरकार के सामने à¤à¤• बड़ी चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ है।